Monday, August 23, 2021

जो जैसा मन जाने न वैसा

 

हम जो हैं जैसे हैं, उसे पूर्ण रूप से स्वीकार करना होगा, क्योंकि चुनाव करने वाला मन या बुद्धि अभी स्वयं ही बंटे हुए हैं, उनके द्वारा लिया गया निर्णय अनिर्णीत ही रह जायेगा. जब मन पूर्ण विश्रांति में होगा, भीतर शुद्ध चेतना का आविर्भाव होगा.  जहाँ कोई दूसरा नहीं होता ऐसी स्थिति में स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है. वहाँ कोई अस्वीकार नहीं है, सब कुछ एक से ही प्रकट हुआ है, ऐसी स्पष्ट प्रतीति है. ऐक्य की उस अवस्था में स्वयं को तथा जगत को वे जैसे हैं वैसे ही स्वीकारने की क्षमता प्रकट होती है. 


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-08-2021) को चर्चा मंच   "विज्ञापन में नारी?"  (चर्चा अंक 4167)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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