जब मन सीमित होता है तब असीम को जान नहीं पाता। उधेड़बुन में लगा रहता है तो विश्राम नहीं पाता । जब कुछ न कुछ चाहता है तब उतना ही पाता है। जिस क्षण भी हर चाह खो जाती है, अस्तित्त्व बरस जाता है। ध्यान का अर्थ है हर चाह, हर क्रिया, हर पहचान खो जाए, वही रहे जो सदा से है और सदा रहेगा। वहीं से प्रेम और शांति का दरिया बहेगा । उन पलों में कोई बोझ नहीं उठाना होगा, किसी को कुछ करके नहीं दिखाना होगा। ऊर्जा निर्बाध तन में बहेगी, प्रकृति जिसका उपयोग सहज ही करेगी। कृत्य होंगे पर कर्ता नहीं होगा। ध्यान मुक्ति का मार्ग दिखाता है और स्वयं से मिलाता है।
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