घनीभूत चेतना हमारी सम्भावना है. हमारे चारों ओर जो प्रकाश बिखरा है, यदि उसे केंद्रित किया जाये तो अग्नि पैदा हो जाती है. चेतना का सागर हमारे चारों ओर लहर रहा है. ध्यान के अभ्यास के द्वारा उसे घनीभूत कर दें तो भीतर नए जगत का निर्माण हो जाता है. चैतन्य की अनुभूति ऐसे ही क्षणों में होती है, वह आनंद घन है, रसपूर्ण है, प्रतिपल नूतन है. वह सहज और सरल है. उसी से जीवन का प्राकट्य हुआ है.
बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteघनीभूत चेतना हमारी सम्भावना है. हमारे चारों ओर जो प्रकाश बिखरा है, यदि उसे केंद्रित किया जाये तो अग्नि पैदा हो जाती है. चेतना का सागर हमारे चारों ओर लहर रहा है. ध्यान के अभ्यास के द्वारा उसे घनीभूत कर दें तो भीतर नए जगत का निर्माण हो जाता है. चैतन्य की अनुभूति ऐसे ही क्षणों में होती है, वह आनंद घन है, रसपूर्ण है, प्रतिपल नूतन है. वह सहज और सरल है. उसी से जीवन का प्राकट्य हुआ है.
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ReplyDeleteआध्यात्मिक चिंतन मनन के तहत अनिता जी के अप्रतिम विचार सदैव की भाँती भले लगे। 'जीवन में जब ध्यान हटेगा 'पर
स्वागत व आभार वीरू भाई !
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