Monday, July 18, 2022

अंतर में जब ध्यान सधे

महाभारत के शांति पर्व में मनु द्वारा बृहस्पति को दिया गया सुंदर उपदेश है जिसमें जीवन को सुखपूर्वक जीने का सुंदर मार्ग बताया गया है। प्रत्येक मानव को शारीरिक या मानसिक कष्टों का सामना जीवन में करना पड़ सकता है। यदि उन्हें  टालने का कोई उपाय दिखायी न दे तो शोक न करके उस दु:ख के निवारण का प्रयत्‍न करना चाहिये।उसे चाहिए कि कष्ट से होने वाले दुःख का चिंतन करना छोड़ दे। चिंतन करने से वह और भी बढ़ता है। शरीर के रोगों को दूर करने के लिए आवश्यक औषधियों का आश्रय लिया जा सकता है। मानसिक दुःख को बुद्धि और विचार द्वारा दूर करे। जगत अनित्य है, यह जानकर इसमें आसक्त नहीं होना है। जो मनुष्‍य सुख और दु:ख दोनों को छोड़ देता है, वह अक्षय ब्रह्म को प्राप्‍त होता है। अत: ज्ञानी पुरुष कभी शोक नहीं करते हैं। विषयों के उपार्जन में दु:ख है। अत: उनका नाश हो जाये तो चिन्‍ता नहीं करनी चाहिये।इसमे संदेह नहीं कि जीवन में सुख की अपेक्षा दु:ख ही अधिक है।परंतु जब साधक सबके आदिकारण निगुर्ण तत्त्व को ध्‍यान के द्वारा अपने अन्‍त:करण में प्राप्‍त कर लेता है, तब कसौटी पर कसे हुए सोने के समान ब्रह्म के यथार्थ स्‍वरूप का ज्ञान होता है।जब  बुद्धि अन्‍तर्मुखी होकर हृदय में स्थित होती है, तब मन विशुद्ध हो जाता है।​​ इस स्थिति में वह जगत में कमलवत रहता है। 


10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-07-2022) को
    चर्चा मंच      "गरमी ने भी रंग जमाया"  (चर्चा अंक-4496)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. अनिता जी, बहुत गहरी बात कही है आप ने लेकिन इस जगत में कमलवत रह पाना तो महात्माओं के ही बस में है, हम साधारण मनुष्य तो सांसारिकता के कीचड़ से स्वयं को मलिन किए बिना रह ही नहीं पाते.

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    1. हम कोशिश तो कर ही सकते हैं, योग साधना और ध्यान को जीवन में अपनाने के बाद यह इतना कठिन नहीं लगता

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  3. यही सीख बचपन से सुनी है लेकिन मेरे अनुभव में सामान्य जीवन में इसे लागू करना बहुत कठिन है, मन सुनता नहीं बार बार चिंता के विषय पर लौट ही जाता है और नींद चुरा लेता है। जाने क्यों चिंता रात को ही अधिक होती है, दिन में कम हो जाती है?

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    1. क्या अपने कभी योग निद्रा का अभ्यास किया है, यू ट्यूब पर श्री श्री रविशंकरजी जी या अन्य किसी सन्त की आवाज में योगनिद्रा सुनते हुए सोएं

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  4. सराहनीय प्रस्तुति

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  5. बहुत ही गूढ़ चिंतन है आपका दीदी । आपको नमन और वंदन।

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    1. स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!

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