Friday, July 22, 2022

पर्यावरण जो करे सरंक्षित

जलवायु परिवर्तन के कारण आज विश्व का तापमान बढ़ रहा है।  जंगल जल रहे हैं , साथ ही  जल रहे हैं हज़ारों निरीह जीव। प्रकृति आज विक्षुब्ध प्रतीत होती है। मानव की बढ़ती हुई लिप्सा के कारण क्रुद्ध भी। आज मानव ने सुविधाओं के अम्बार लगा दिए हैं पर किस क़ीमत पर ? सूर्य की ऊर्जा ग्रीन गैसों की बढ़ती हुई मात्रा  के कारण बाहर नहीं जा पाती, इसलिए मौसम में असमय बदलाव हो रहे हैं। ईश्वर को नकारने का भाव मानव को स्वयं से भी दूर ले जा रहा है। सत्य की राह पर चलने के लिए उसे मानना तो पड़ेगा। अपने ज़मीर को भुलाकर युद्ध की आग में भी कुछ देश जल रहे हैं। अपने ही नागरिकों को भीषण दुःख में झोंकते हुए शासकगण एक बार भी नहीं सोचते। हथियारों की दौड़ में न जाने कितने  देश ग़लत नीतियों को अपना रहे हैं। जैविक और रासायनिक हथियारों पर शोध चल रही है यह जानते हुए भी कि इसके दुष्परिणाम इसी धरती के वसियों को भुगतने पड़ेंगे। प्रकृति के सामान्य नियमों को तोड़ते हुए मानव आज परिवार को भी जोड़ पाने में सक्षम नहीं रह गए हैं। किसी नीति, धर्म या परंपरा को न मानने का प्रण लेते हुए मानव को क्या दानव की वृत्ति अपनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। तभी शायद जंगलों में आग लगी है, युद्ध ख़त्म होने को नहीं आ रहा, कोरोना नियंत्रित होने का नाम नहीं ले रहा। विश्व जैसा आज दिशाहीन हो गया है। किंतु अस्तित्त्व आज भी अपने गौरव में मुस्का रहा है। यदि अब भी हम सजग हो जाएँ; अपने भीतर उस एक्य को महसूस करें जिससे यह कण-कण बना है; उस तत्व को नमन करें तो  कुछ अवश्य बचाया जा सकता है। एक बार फिर सादा जीवन और उच्च विचार की जीवन शैली को अपनाकर हम अपनी धरती को विनाश से बचा सकते हैं। 


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