प्रार्थना में अपार शक्ति है, प्रार्थना हमें विनीत बनाती है, हमारी भीतरी अभीप्सा से
रूबरू कराती है. हम अपने भीतर उतर कर जब टटोलते हैं कि आखिर हम चाहते क्या हैं, तब
ही प्रार्थना का जन्म होता है. प्रार्थना जब अपने आप जगती है, तब पूरी भी अपने आप
होती है. अंतर जब पवित्रता का अनुभव करता हो तब जो प्रार्थना जन्मेगी वह हमें
लक्ष्य तक ले ही जाएगी. जब अंतर प्रतिस्पर्धा से मुक्त हो तब सहज ही जो पुकार उठती
है भीतर वही मुक्त करती है.
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