जीवन परमात्मा का दिया सुंदर उपहार है, इसको हम कितनी ही बार सुनते हैं और पढ़ते
हैं, पर हम इस बात की ओर ध्यान ही नहीं देते कि हमने उपहार को खोला ही नहीं है, हम
गिफ्ट रैप में ही उलझे हैं, देह तो बाहरी आवरण है, रंगीन रिबनों से सजा हुआ, और मन
वह डिब्बा है जिसके भीतर उपहार है. हम उन्हीं में उलझ जाते हैं और असली हीरा जो
भीतर है, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता.
अनिता जी ! आपने बिल्कुल सही बात कही , हम देह में ही उलझ - कर रह गए हैं । सुन्दर - प्रस्तुति ।
ReplyDelete