हमारे हर कृत्य का चाहे वह मनसा हो, वाचा या कर्मणा हो, हमारी आत्मा पर, ऊर्जा पर असर
पड़ता है. यह असर दो तरह का हो सकता है पहला उसे भरपूर करने वाला दूसरा उसे रिक्त
करने वाला. किसी भी तरह का नकारात्मक भाव ऊर्जा का हनन करता है, सात्विकता उसे
समृद्ध करती है. इसका अर्थ हुआ कि व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति यदि हमारे विपरीत
भी प्रतीत होती हो यदि हम उसे स्वीकार लेते हैं और मन को नकार से नहीं भरते, ऊर्जा
बढती है और यदि सब कुछ हमारे अनुकूल भी हो पर हमरा रवैया यदि हर जगह दोष देखने
वाला हुआ तो ऊर्जा घटती है. ऊर्जा की कमी ही किसी भी तरह के रोग का कारण होती है.
No comments:
Post a Comment