प्रारब्ध वश सुख-दुःख तो हमें मिलने ही वाले हैं, सुख आने पर यदि अभिमान आ गया तो नया
कर्म बना लिया जिसका फल भविष्य में दुःख रूप में आएगा, दुःख आने पर यदि दुखी हो
गये तो भी नया बीज डाल दिया जिसका परिणाम दुख आने ही वाला है. साधक को चाहिए कि
दोनों ही स्थितियों में सम रहे, वे जैसे आये हैं वैसे ही चले जायेंगे, नया कर्म बंधेगा
नहीं, वर्तमान भी सुधर गया और भविष्य भी. समता का अभ्यास नियमित ‘ध्यान’ करके किया
जा सकता है.
सुख सुख में समत्व भाव ही जीवन में सफलता का आधार है...
ReplyDeleteसही है... हर रात के बाद दिन आता ही है ...
ReplyDeleteआसान सा लगता है कठिन भी है पर असँभव नहीं ।
ReplyDelete" सुख दुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ReplyDeleteततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥"
गीता
duniya me kuchh bhi asambhav nhi hai bs kaam ko krne ki ichchha shakti honi chaahiye...
ReplyDeleteGet Govt Job Alert
कैलाश जी, ज्योति जी, शकुंतला जी, सुधीर जी व सुशील जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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