Monday, August 31, 2015

भीतर सुख का घर है


आत्मा ज्ञाता और द्रष्टा है, मन मननशील है, बुद्धि विचारती है, अहंकार इन सबका सेहरा अपने सर ले लेता है और स्वयं को ही कर्ता-धर्ता मानता है. आत्मा तक अभी मन, बुद्धि की पहुंच नहीं है सो वे अहंकार को ही अपना स्वामी मानते हैं. अहंकार का स्वभाव ही है नकारात्मक, सो जीवन से अशांति कभी जाती नहीं. उपाय क्या है ? आत्मा तक पहुंचकर उसे अपना स्वामी मानना ही एकमात्र उपाय है, आत्मा स्वभाव से ही सकारात्मक है, सुख और शांति का स्रोत है, मन व बुद्धि उससे मिलकर स्वतः ही आशा और विश्वास से भर जाते हैं.

2 comments:

  1. bahut sundar baat kahi aapne anita ji ..

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  2. स्वागत व आभार उपासना जी !

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