११ जनवरी २०१९
कहने को नया वर्ष आया
है, पर गहराई से देखें तो जीवन हर क्षण नया है. हर सुबह पहले से अलग, हर रात्रि
पूर्व से भिन्न. नेत्रों के सामने यहाँ दृश्य निरंतर बदल रहे हैं, पंछियों के सुर
भोर में अलग होते हैं और दोपहरी में कुछ और. संत कहते हैं, दृश्य को देखने वाला
कभी नहीं बदलता, उसी द्रष्टा में ठहरना सीख लिया तो जगत की धूप-छाँव प्रभावित नहीं
करेगी, दोनों में मन एकरस रह सकता है. वह द्रष्टा कहाँ है, कौन है, उस तक कैसे
पहुंचा जा सकता है, इसे जानना ही साधना का लक्ष्य है. हम मन व बुद्धि से ही जगत को
देखते हैं. मन पूर्व धारणाओं का समूह है और बुद्धि आजतक प्राप्त हुए ज्ञान का. यदि
उसी चश्मे से जगत को देखा तो हम उसके वास्तविक रूप को कभी जान ही नहीं सकते. आश्चर्य
तो इस बात का है कि असल में हम ही द्रष्टा हैं, पर इस बात को भुला बैठे हैं. स्वयं
को जाने बिना जगत को जाना भी कैसे जा सकता है. जितनी बार भी इस बात को दोहराया
जाये कम है. मंजिल तक पहुँचने से पहले तो खुद को याद दिलाते ही रहना है.
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