२१ जनवरी २०१९
मन की गागर को
जितना भरें वह खाली ही रहती है, हर उपलब्धि कुछ दिनों बाद कम पड़ जाती है. हर अनुभव
कुछ दिनों बाद खो जाता है. भीतर एक रिक्तता का अहसास है कि जाता ही नहीं, एक तलाश
जैसे हर बार कुछ नया पाने को उकसाती है. एक खोज निरंतर चलती ही रहती है, और यही
खोज मानव को एक दिन उसकी असलियत से रूबरू करा सकती है. उसी असलियत को संत और
शास्त्र नये-नये उपायों से समझा रहे हैं, ज्ञान योग, भक्ति योग या कर्म योग उसी एक
मंजिल पर ले जाने के लिए है. यहाँ तक कि यदि कोई सजग होकर अपने सामान्य जीवन का भी
अध्ययन करे तो वह उसी निष्कर्ष पर पहुँच जायेगा. वास्तव में मन की गागर की कोई
पेंदी ही नहीं है, अतल है उसकी गहराई और अनंत है उसकी चाहने की क्षमता. एक जन्म तो
क्या हजार जन्म लेकर भी इस मन को तृप्त नहीं किया जा सकता, एक तरह से हम सभी एक
असाध्य कार्य में लगे हैं. कितना अच्छा हो कि अपने पुरुषार्थ द्वारा जो मिला है
उसमें संतुष्ट रहकर इस संसार को बेहतर बनाने में जितना हो सके योगदान करें. क्योंकि
देने की ख़ुशी ही वह शै है जो मन को तृप्त कर सकती है.
देने की ख़ुशी और अनंत के गहरे रहस्य खोजने का नाम ही जीवन है ...
ReplyDeleteकितना सही कहा है आपने..जीवन एक सुंदर खोज का नाम है और बंटने का भी..
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