१८ जनवरी २०१८
संत और शास्त्र जिस बात की ओर संकेत कर रहे हैं, वह अनमोल है.
हमारे पास जो भी कीमती वस्तु हो उससे अधिक अनमोल, किन्तु हम उसका महत्व नहीं समझ
पाते. वे कहते हैं, देवता भी मानव जन्म के लिए लालायित रहते हैं, क्योंकि इसी जन्म
में हम अपने मूल स्रोत तक पहुंच सकते हैं. मन और बुद्धि के जो उपकरण हमें प्रकृति
से मिले हैं, उनके द्वारा मानव ने कितनी उन्नति कर ली है, किन्तु वह अपने मूल से
दूर निकल गया है. यदि कोई बालक कोई प्रदर्शनी देखने घर से निकल जाये और फिर वापसी
का रास्ता भूल जाये तो उसे भटकना पड़ता है, उसके दुःख की कल्पना हम कर सकते हैं. मन
रूपी बालक भी आत्मा रूपी माँ से बिछड़ कर संसार की रंगीनियों में खो गया है, उसे तो
यह भी याद नहीं कि उसका कोई घर भी है. अपने मूल से जुड़ा हुआ मन उस नाव की तरह होता
है, जिसका लंगर उसके साथ है, वह कभी डूबती नहीं. वह उस घर की तरह होता है जिसकी
नींव धरती में गहरी खुदी है, जो रेत का महल नहीं है.
हम जितना विकास की ओर जा रहे हैं उतना ही स्वयं को अपनी आत्मा से दूर कर रहे हैं. बहुत प्रबुद्ध चिंतन..
ReplyDeleteसही कहा है आपने...स्वागत व आभार कैलाश जी !
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