Tuesday, January 22, 2019

दो के पार वही बसता है


२२ जनवरी २०१९  
परमात्मा हमें दोनों हाथों से दे रहा है, विवेक और वैराग्य ही उसके दो हाथ हैं. विवेक के द्वारा हमें सत्य-असत्य, नित्य-अनित्य, चिन्मय-मृण्मय में भेद करना सिखाता है. वैराग्य के द्वारा वह हमें अपने घर में लौटा लेना चाहता है. अभी हम असत्य में जी रहे हैं, अनित्य के प्रति हमारे मन में राग है, मृण्मय देह को ही हमने अपना सर्वस्व मान लिया है. वैराग्य के अभाव में हम अपने घर से बहुत दूर निकल आये हैं. जगत हमें लुभाता है पर उसके कारण कितने दुखों का सामना हमें करना पड़ता है. चिन्मय के प्रति प्रेम ही वैराग्य का परिणाम है. वही सत्य और नित्य है. स्वयं परमात्मा सारे द्वन्द्वों से परे है, पूर्ण विश्राम वहीं है.

4 comments:

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    1. स्वागत व आभार रोहितास जी !

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  2. हम सांसारिक उपलब्धियों को ही अपनी अपनी सफलता मानने लगे हैं, परिमाणतः परमात्मा से दूर होते जा रहे हैं... बहुत सार्थक चिंतन...

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    1. स्वागत व आभार कैलाश जी !

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