Wednesday, July 10, 2019

पल पल सजग रहे जो मन



मन सदा ही परिचित मार्गों पर जाना चाहता है. नयापन उसे डराता है अथवा तो उसकी उस जड़ता को तोड़ता है, जिसकी मन को आदत हो गयी है. किसी दार्शनिक ने कहा है, मनुष्य आदतों का पुतला है. हम बहुत कुछ केवल स्वभाव वश ही करते हैं, जो आदतें हमारे लिए हानिकारक भी हैं, जिनका हमें ज्ञान भी है, फिर भी हम उन्हें त्यागना नहीं चाहते. जो आदतें अच्छी हैं उनको भी हम यदि असजग होकर दोहराते रहते हैं तो जितना लाभ मिलना चाहिए उतना नहीं ले पाते. जैसे किसी को यदि सुबह उठकर गीता पाठ करने का नियम है और वह बिना भाव के या अर्थ समझे ही उसका नित्य पाठ करता रहे, तो यह अच्छी आदत होते हुए भी उसके जीवन में विशेष परिवर्तन नहीं ला सकती. हम जो भी करते हैं उसकी पूरी जिम्मेदारी हमारी है, उसका जो भी फल मिलेगा उसका भागीदार हमें ही होना है. असजगता हमें अपने शुद्ध स्वरूप से दूर ले जाती है, अथवा तो जब भी हम अपने मूल स्वभाव से दूर होते हैं, असजग होते हैं. योग का अर्थ है, स्वयं के शुद्ध स्वरूप से जुड़े रहना, इसी योग की साधना हमें करनी है.

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