Monday, July 29, 2019

भीतर बाहर एक हुआ जो


एक जीवन बाहर है और एक जीवन भीतर है. साधना का लक्ष्य है दोनों में समरसता लाना. हम घर में रहते हैं और बाहर भी जाते हैं. साधना का लक्ष्य है दोनों जगह हमारे मन का भाव रसमय बना रहे. यदि भीतर अशांति है तो लाख न चाहने पर भी हमारे व्यवहार में वह झलक ही जाएगी. यदि भीतर शांति है तो बाहर के शोरगुल में भी हमारा व्यवहार सौम्य बना रह सकता है. साधक के जीवन में एक दिन ऐसा भी आता है जब भीतर और बाहर का सारा भेद खो जाता है, तब उसके व्यवहार में सहजता प्रकट होती है. उसी दिन वह अपनी दृष्टि में प्रामाणिक होता है, और जगत में उसके लिए कोई पराया नहीं रह जाता. संत व शास्त्र बताते हैं इसके लिए स्वयं को जानना पहला कदम है. ध्यानपूर्वक जब हम अपने मन को देखना आरंभ करते हैं तो वह सारी चतुराई छोड़ने को तैयार हो जाता है. पहले पहल विकार प्रबल होते हुए लगते हैं पर धैर्यपूर्वक उनका दर्शन करने से वे अपना असर खोने लगते हैं. मन की गहराई में छिपा रस प्रकट होने लगता है और सहज ही बाहर जीवन बदलने लगता है.  

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