जिस सृष्टि का
निर्माण हमने ही किया है, हम उसे ही न जानें और उससे ही प्रभावित हो जाएं, यह आश्चर्य
की बात नहीं तो और क्या है ! बाहर की तरह अपने भीतर हर पल हम एक वातावरण का निर्माण
करते हैं जो विचारों और भावनाओं से बना है। हम ही उसका संवर्धन भी करते हैं और कुछ
समय बाद उसका संहार भी कर देते हैं। हमारी सृष्टि हमारी आशाओं और आकांक्षाओं को ही
तो प्रदर्शित करती है। यदि यह सुखद नहीं है तो भी हम ही इसके लिए उत्तरदायी हैं। जिसे
भाग्य कहा जाता है वह एक दिन हमारे ही द्वारा किए गए पुरुषार्थ से जन्मा है।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-1-21) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"(चर्चा अंक-3951) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
Deleteजिसे भाग्य कहा जाता है वह एक दिन हमारे ही द्वारा किए गए पुरुषार्थ से जन्मा है।..बिल्कुल सत्य कहा है अनीता दी आपने..सादर नमन..
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteजिसे भाग्य कहा जाता है वह एक दिन हमारे ही द्वारा किए गए पुरुषार्थ से जन्मा है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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