Tuesday, January 5, 2021

कर्ताभाव का त्याग करे जो

भगवद्गीता में एक जगह अर्जुन ने कृष्ण से पूछा है, ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है ? और कर्म क्या है ? कृष्ण कहते हैं जो परम है अर्थात सर्वश्रेष्ठ है; जो  अक्षर है अर्थात अविनाशी है; वही ब्रह्म है. हम अपने आसपास वस्तुओं को नित्य बनते-नष्ट होते देखते हैं, लोगों को जन्मते व मरते देखते हैं, क्या ऐसा कुछ है जो कभी नष्ट नहीं होता. वास्तव में वस्तुएं अपना रूप बदल लेती हैं, बीज नष्ट होता है तो वृक्ष बन जाता है, वृक्ष नष्ट हो जाता है तो अंततः खाद बनकर मिट्टी में ही मिल जाता है. विज्ञान में हमने पढ़ा है कि ऊर्जा और पदार्थ न बनाये जा सकते हैं न नष्ट किये जा सकते हैं, केवल उन्हें परिवर्तित किया जा सकता है. ब्रह्म ऐसा पदार्थ या ऊर्जा है जो सदा एक सा है. दूसरे प्रश्न के उत्तर में कृष्ण कहते हैं, स्वभाव ही अध्यात्म है. हर प्राणी का मूल स्वभाव जो शिशु जन्म से अपने साथ लेकर आता है, अध्यात्म है. जब तक बच्चा भाषा नहीं सीख लेता वह स्वभाव से ही संवाद करता है, प्रकृति में सभी जीव उसी मूल स्वभाव से जुड़े हैं, एक बिल्ली अथवा कुत्ते को कैसे ज्ञात हो जाता है कि उसे स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए कौन सा पत्ता खाना है. संत मौन से ही वृक्षों के साथ संवाद कर लेते हैं क्योंकि वह निज स्वभाव में रहते हैं. कर्म की परिभाषा में कृष्ण कहते हैं, भूतों के भाव का त्याग ही कर्म है, अर्थात जब हम अपने मूल स्वभाव से हट हो जाते हैं तो कर्ता भाव में आ जाते हैं. कितने ही साधक कहते हैं साधना काल में मन शांत रहता है पर कर्म करते समय मन विचलित हो जाता है. इसका अर्थ है कि हम अध्यात्म से नीचे उतर गए. इसीलिए कृष्ण निष्काम कर्म करने के लिए कहते हैं जो आत्मा में स्थित रहकर किया जा सकता  है तथा जिसका कोई बन्धन नहीं होता. 

 

2 comments:

  1. सबसे ज्यादा सत्य जो दिल को अच्छा लगा 🙏

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