Tuesday, December 15, 2020

सब कुछ भीतर बाहिर नाहीं

 मानवीयता  के सारे उपकरण जन्मजात मानव को मिले हैं, उसके भीतर ही हैं पर जैसे कोई अपना धन कहीं रखकर भूल जाये वैसे ही हम उन्हें भुला बैठे हैं. मानवीय भावनाएं प्रेम, आनंद, सुख, शांति, करुणा, पवित्रता, सत्विकता आदि खोजने तो जाना नहीं है, ये हरेक के भीतर हैं, नानक कहते हैं सबके भीतर वे हैं कोई घर इनसे खाली नहीं है. एक उंगली के सहारे ही हृदय की वीणा झंकृत हो सकती है. नन्हा बालक या बालिका जिन असीम सम्भावनाओं के साथ इस जग में आते हैं, जरा सा सहारा मिले तो वे खिल कर ऊपर आ सकती हैं। किन्तु आज के मानव  के पास फुरसत ही नहीं है, वह अपनी ही धुन में चल जा रहा है। समय की निधि चुकती जाती है और जीवन संध्या निकट आ जाती है। संत कहते हैं हर देह में शक्ति के केंद्र हैं, जिन्हें योग और ध्यान से जगाया जा सकता है। मानसिक, दैहिक और आत्मिक शक्ति के द्वारा ही कोरोना जैसी आपदाओं का हम सामना कर सकते हैं। 


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