भागवत पुराण में यह वर्णन आता है. यह संसार एक सनातन वृक्ष है, इस वृक्ष का आश्रय है एक प्रकृति. इसके दो फल हैं - सुख और दुःख; तीन जड़ें हैं, सत्व, रज और तम. चार रस हैं - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. इसको जानने के पांच प्रकार हैं-कर्ण, त्वचा, नेत्र, रसना और नासिका. इसके छह स्वभाव हैं - पैदा होना, रहना, बढ़ना, बदलना, घटना और नष्ट हो जाना. इस वृक्ष की छाल हैं सात धातुएं - रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र. इसकी आठ शाखाएँ हैं - पंचमहाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार. मुख, दो आँखें आदि नव द्वार इसमें बने हुए खोड़र हैं. प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, देवदत्त, कूर्म, कृकल, नाग और धनजंय - ये दस प्राण ही इसके पत्ते हैं. इस संसार रूपी वृक्ष पर दो पक्षी हैं - जीव और ईश्वर . इस वृक्ष की उत्पत्ति का आधार भी ईश्वर है. यदि जीव अपना ध्यान इस वृक्ष से हटाकर ईश्वर पर लगाए तो सहज ही सुख-दुःख रूपी फलों के आकर्षण से बच सकता है, जिसके बाद ही उसे ईश्वरीय आनंद का अनुभव होता है.
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (19-05-2021 ) को 'करोना का क़हर क्या कम था जो तूफ़ान भी आ गया। ( चर्चा अंक 4070 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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Deleteखोड़र का अर्थ क्या है ??? साधारण भाषा में....
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