आज दुनिया एक महामारी से जूझ रही है, किन्तु क्या यह पहली बार हुआ है, क्या इतिहास में हमें इसकी गवाही नहीं मिलती. कुछ वर्ष पहले भी सार्स, इबोला और भी कितने ही वायरस का मुकाबला मानवता ने किया है. यह सही है कि इस बार का हमला अभूतपूर्व है पर यह बिलकुल ही अचानक नहीं हुआ है. वैज्ञानिक इसकी चेतावनी देते रहे हैं, इस पर शोध कार्य भी दुनिया की कितनी प्रयोगशालाओं में चल रहा था. अब हमें लगता है सब कुछ खत्म हो गया है, किन्तु संत कहते हैं, दुनिया केवल सतह पर ही अपूर्ण दिखाई देती है। पूर्णता छिपी रहती है, अपूर्णता प्रकट होती है। ज्ञानी सतह पर नहीं रहता बल्कि गहराई में खोज करता है। जब हालात कठिन हों और जिनमें परिवर्तन करना हमारे बस में न हो तब परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करने के बजाय हमें अपनी धारणाओं को बदलने की जरूरत है। ऐसे समय में आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि हम अपना निर्धारित कार्य करते रहें और स्थितियों को उसी तरह स्वीकार करें, जैसी वे हैं. जिस क्षण हम किसी स्थिति को स्वीकार करते हैं, मन शांत हो जाता है और हमें प्रतिक्रिया के बजाय सोचने और कार्य करने के लिए एक स्पष्ट स्थान मिल जाता है। हम अपनी ऊर्जा का सही उपयोग कर सकते हैं. वर्तमान में हम कोरोना के प्रोटोकॉल का अनुसरण करके तथा जीवनशैली में उचित परिवर्तन करके स्वयं को स्वस्थ बनाये रख सकते हैं.
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