Monday, May 17, 2021

जब समाज में सत्व बढ़ेगा

 पुराणों में कथा आती है, जब-जब पृथ्वी पर असुरों का भार बढ़ गया तो उनके विनाश के उपाय करने पड़े. असुरों के सींग नहीं होते, वे भी मानव ही होते हैं. उनमें दैवीय अथवा मानवीय गुणों की अपेक्षा आसुरी प्रवृत्तियां अधिक प्रकट होती हैं. सात्विक भावों से भरे मानव देवता होते हैं. सात्विक व राजसिक दोनों गुणों से युक्त मानव तथा राजसिक व तामसिक गुणों से भरे हुए लोग असुर कहलाते हैं. जब जीवन में सत्व की कमी हो जाती है, लोग ईमानदारी को अपवाद तथा बेईमानी को जीवन व व्यापार का सहज अंग मानने लगते हैं, मिलावट, कालाबाजारी बढ़ जाती है. रिश्वत लेकर या देकर काम निकालना बुरा नहीं समझा जाता. जब विद्यालयों में अध्ययन के साथ साथ व्यसनाधीन होने की सुविधा भी मिलती है, तब आसुरी प्रवृत्ति बढ़ने लगने लगती है. अहंकार, धन या बल का प्रदर्शन आसुरी गुण हैं. मानव को सन्मार्ग पर लाने के लिए अस्तित्त्व द्वारा समय-समय पर उपाय किये जाते हैं. सम्भवतः आज हम उसी दौर से गुजर रहे हैं, यदि मानव अब भी नहीं संभला तो भविष्य में और भी कठिन समय से गुजरना पड़ सकता है. 


2 comments:

  1. अहंकार, धन या बल का प्रदर्शन आसुरी गुण हैं. मानव को सन्मार्ग पर लाने के लिए अस्तित्त्व द्वारा समय-समय पर उपाय किये जाते हैं. सम्भवतः आज हम उसी दौर से गुजर रहे हैं, यदि मानव अब भी नहीं संभला तो भविष्य में और भी कठिन समय से गुजरना पड़ सकता है. --सार्थक और गहर बात...समझना ही होगा और कोई रास्ता नहीं है यदि बेहतर की ओर अग्रसर होना है।

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