Tuesday, January 24, 2012

मध्य मार्ग ही उत्तम है


अक्तूबर २०१२ 
कर्म और ज्ञान दोनों में समन्वय होना चाहिए. प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों के मध्य का मार्ग अपनाकर ही हम योग साधना कर सकते हैं. सदगुरु न तो हमें भोग की ओर ले जाते हैं न त्याग की ओर, वे हमें त्याग करते हुए भोग की बात बताते हैं. वे जटिल प्रश्नों का कितना सरल हल बताते हैं. भक्ति व ज्ञान का समन्वय हो तो हम अहंकार व अकर्मण्यता दोनों से मुक्त रहेंगे. भक्ति में हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, ज्ञान होने पर स्वयं को आत्मा जानकर हम उससे समानता का अनुभव करते हैं. वह और हम दो नहीं हैं, जुदा नहीं हैं, सदा से एक हैं, दोनों अविनाशी, शाश्वत, ज्ञान व प्रेम स्वरूप. उसे खोजने कहीं दूर नहीं जाना है. पहले भक्ति के द्वारा हृदय को शुद्ध करना है, चित्त को निर्मल करना है फिर वह हमें उसी तरह प्राप्त होगा जैसे हवा और धूप...सहज ही. एक एक कर दोषों को निकालने की बजाय एक ही बात करनी है उसका स्मरण... प्रतिपल वह याद रहे तो हम गलत कार्य की ओर उन्मुख ही न हों. 

5 comments:

  1. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ...

    ।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।

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  2. labhkari post bahut achcha likha hai.gantantra divas ki badhaai.

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  3. सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति.

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  4. आप सभी का आभार!

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