Tuesday, January 10, 2012

निर्विकार साक्षी


सितम्बर २००२ 
ईश्वर पुरातन है, आदि है, अनादि है, शाश्वत है और अनंत है. सारी सृष्टि का वही अध्यक्ष है, वह कण-कण में व्याप्त है. हमें अपने अंदर उसकी उपस्थिति का अहसास करना है. उसको अपने जीवन का केन्द्र बना लें तो जीवन शांतिमय, सुखमय और रसमय हो जाता है. पानी जैसे तापमान के बदलने पर अपनी अवस्था बदलता रहता है वैसे ही हमारा मन बाहरी परिस्थितियों के बदलने पर बदलता रहता है, लेकिन इसको देखने वाला निर्विकार रहता है. जो अचल है, शुद्ध है, नित्य है, पूर्ण ज्ञान, पूर्ण प्रेम व पूर्ण आनंद है. हम हर क्षण किसी न किसी कर्म में रत हुए इसका अनुभव नहीं कर पाते. कर्मों के बंधन को तोड़ने के लिये हमें कर्म फल में आसक्ति का त्याग करना होगा. तब हमें लाभ-हानि की चिंता नहीं होगी. कोई कामना या वासना पूर्ति हमारे कर्मों का उद्देश्य नहीं रहता. वैराग्य यदि हममें दिखाई दे तो मानना चाहिए कि भक्ति का उदय हो रहा है. निष्काम भक्ति से ही भीतर ज्ञान प्रकट होता है.

2 comments:

  1. ये वैराग्य भाव लाना ही सबसे मुश्किल कार्य है ...
    उत्तम लिखा है ..

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  2. बहुत बेहतरीन और सभी के द्वारा प्रशंसनीय पोस्ट है मैडम आपकी।
    आभार!

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