Saturday, January 7, 2012

गहन मौन



सद्ग्रन्थों का अध्ययन हमें उन्नत करता है. सद्विचार हमारे मन को महकाते हैं. भावों के गुलाब जब हृदय के बगीचे में खिलते हैं तो आसपास सब कुछ महकने लगता है. चेहरे पर मुस्कुराहट हो और आँखों से ही अपनी बात कहने की कला आ जाये, वाणी खामोश हो और मन का चितन भी शांत हो. न बाहर से शब्दों को ग्रहण करें और न ही भीतर से सम्प्रेषण ...गहन मौन में ही परम सत्ता का वास है. 

4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति।
    आज युवाओँ को ऐसी ही रचनाएँ पढ़ने की जरुरत है।
    अनिता जी आपको इंडिया दर्पण की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। इंडिया दर्पण पर आपका स्वागत है।

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  2. सार्थक और सुकूनदेह प्रेरक शब्‍द.

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  3. रमा कान्त जी, भावना जी आपका आभार!

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