Tuesday, January 31, 2012

वह कौन है


परमात्मा हमारा जीवन धन है, हमारा सर्वस्व, हमारे अस्तित्त्व का प्रमाण, वह हमारा हितैषी है. शुभचिंतक और सुहृदयी. वह हमारी अंतरात्मा है. भक्त के पोर-पोर में उसका नाम अंकित है, उसके प्रति वह अपने भीतर इतना प्रेम उमड़ते महसूस करता है कि उसकी गूंज तक उसे सुनाई पड़ती है. उसका नाम लेते ही आँखें नम हो जाती हैं. वह प्रियतम है, अनुपम है और मधुमय है. वही जानने योग्य है. एक उसी की सत्ता कण-कण में व्याप्त है, वही चैतन्य हर जड़-चेतन में समाया है. उसी का प्रकाश सूर्य आदि नक्षत्रों में है और उसी का प्रकाश है जो आँखें बंद करते ही उसे घेर लेता है. 

3 comments:

  1. अनुपमा जी, कुसुमेश जी, आपका स्वागत व आभार !

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