Thursday, June 13, 2013

प्रेम ते प्रगट होई मैं जाना

अक्तूबर २००४ 
प्रेम का पहला लक्षण है- प्रकाश, घने अंधकार में भी जो सभी का दर्शन सम्भव करा देता है. जब कुछ भी समझ न आता हो तब जो भाव भीतर बुद्धि को प्रकाशित करता है, वही प्रेम है. दूसरा लक्षण है प्रसाद, कृपा, आनन्द का अनुभव. जहाँ प्रेम है विषाद वहाँ नहीं रहता. प्रेम की पीड़ा, प्रेम में बहे  अश्रु दुःख के कारण नहीं होते, कृपा होती है तभी उसके विरह में अश्रु बहते हैं, और कभी जैसे सब शांत हो जाता है, अनुभव बदल जाता है, स्मृति तो सदा रहती है, उसका अगला लक्षण प्रशांत है. चित्त जब पूरी तरह से शांत रस में डूबा हो, न विरह की तीव्रता न मिलन का सुख, केवल एक अखंड शांति का अनुभव होता हो. प्रेम का अंतिम लक्षण है प्रसार, वह अपने आप फैलता है, प्रेम यदि भीतर है तो वह सहज ही सब तरफ बहता है, सूक्ष्म तरंगे वातावरण में फ़ैल जाती हैं, शुद्द प्रेम का अनुभव होने पर सारा जगत अपना लगता है, एक अंश भी यदि विरोध है तो हम अभी दूर हैं.

6 comments:

  1. गुरु देव की असीम कृपा है आप पर ...बहुत सुलझी सोच और सुन्दर तरीके से आप अभिव्यक्त भी करती हैं ...मन शांत शांत स हो जाता है पढ़ कर ...
    बहुत आभार ....अनीता जी .

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  2. अनीता जी ,

    शुद्द प्रेम का अनुभव होने पर सारा जगत अपना लगता है, एक अंश भी यदि विरोध है तो हम अभी दूर हैं.

    बहुत सही व्याख्या की है आपने... आपको पढ़ना सुकूनदायक होता है.. धन्यवाद

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  3. सपने, विचार, यादें, स्मृति सभी कम्प्यूटराइज्ड है
    जो एक चिप व कम्प्यूटर द्वारा संचालित है
    मेरे ब्लॉंग को अवश्य पढ़े
    आपके आध्यामिक ज्ञान में बढ़ाेत्तरी होगी-

    http://sarikkhan2.blogspot.in/

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  4. बहुत सही व्याख्या की है आपने. धन्यवाद

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  5. अनुपमा जी, मुदिता जी, अशोक जी व सारिक जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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