सितम्बर २००४
ज्ञान मुक्त करता है और मुक्ति ही भक्ति को जन्म देती है. जब
भीतर कोई गाँठ नहीं रहती, मन खाली हो जाता है तो स्वतः ही जिस शांति का अनुभव होता
है, वही भक्ति है, अथवा जब सहज कर्म के द्वारा हम जिस तृप्ति का अनुभव करते हैं,
वह कर्म भी वहीं पहुंचाता है. भाव ही पूजा है, पूजा में किये जाने वाले कृत्य यदि
भाव से नहीं भरे हैं तो प्रभु तक नहीं पहुंच सकते. हमारी हर श्वास जब उसकी स्मृति
में आती है, तभी हम वास्तव में पूजा करते हैं. कृपा से भक्ति टिकती है, समर्पण ही
उसका आधार है.
कृपा से भक्ति टिकती है, समर्पण ही उसका आधार है...
ReplyDeleteसमर्पण ही उसका आधार है.
ReplyDeleteशानदार,उम्दा प्रस्तुति,,,
RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
बहुत सटीक बात कही आपने ....
ReplyDeleteसमर्पण ही भक्ति का आधार है...
राहुल, धीरेन्द्र व मइड़ा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete