Tuesday, June 11, 2013

जो मैं हूँ सो तू है


साधना के पथ पर धैर्य पूर्वक हमें कदम-कदम चलते जाना है. जिस विवेक में धैर्य नहीं है, उसमें भक्ति टिक नहीं सकती. भक्ति और प्रेम की परिभाषा यही है कि वहाँ दो नहीं रहते, हाँ, भाषा के अधीन होने से हमें ‘मैं’ और ‘तुम’ का प्रयोग करना पड़ता है. अपने प्रति जो हमारा भाव होगा वही दूसरों की तरफ बहेगा. यदि हम स्वयं को ही न स्वीकारें स्वयं के प्रति भी कठोर रहें तो इसकी झलक आचरण में आयेगी ही. प्रेम पहले ‘स्व’ की तरफ होगा तभी ‘पर’ की ओर होगा. हमारा ‘स्व’ उसी परमात्मा का अंश है, उसी से उपजा है, इसलिए ही प्रिय है. जो संबंध हमारा अपने साथ है वही परमात्मा के साथ हो एकता है. चेतना सभी जगह एक ही है, वह विभिन्न माध्यमों से कम या अधिक प्रकट हो रही है. 

2 comments:

  1. साधना के पथ पर धैर्य पूर्वक हमें कदम-कदम चलते जाना है. जिस विवेक में धैर्य नहीं है, उसमें भक्ति टिक नहीं सकती.
    EK PARAM SATY

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  2. जिस विवेक में धैर्य नहीं है, उसमें भक्ति टिक नहीं सकती. भक्ति और प्रेम की परिभाषा यही है कि वहाँ दो नहीं रहते, हाँ, भाषा के अधीन होने से हमें ‘मैं’ और ‘तुम’ का प्रयोग करना पड़ता है. अपने प्रति जो हमारा भाव होगा वही दूसरों की तरफ बहेगा.

    वाह बहुत सुन्दर ....आभार अनीता जी ..

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