अक्तूबर २००४
आज का युग अभिनय का युग है. हम नित्यप्रति के अपने व्यवहार
में अभिनय करते हैं तो सत्य से, सहजता से दूर हो जाते हैं. वैसे तो किसी ने कहा
है, संसार एक नाटक शाला है पर नाटक में भी उसी का अभिनय सराहा जाता है जो सहज होता
है. धर्म कहीं हमारे लिए एक कृत्य न बन जाये वह
हमारे स्वभाव का अंग बनता जाये. जब हमें यह ज्ञात हो चुका है, जाना कहाँ है
तो चलना ही हमारे लिए उचित है. मनसा, वाचा, कर्मणा कोई भी कर्म हमारे लिए आवश्यक
या अनावश्यक न रहे, तो मन सहज रह सकता है, और तब यह जगत जैसा है वैसा ही दिखने
लगता है.
आज का युग अभिनय का युग है,,सत्य है
ReplyDeleterecent post : मैनें अपने कल को देखा,
हम सब जीवन में नाटक के पात्र की तरह ही अभिनय कर रहें हैं.बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeleteअपने ध्येय पर निरंतर अग्रसर होना ही जीवन है ...!!सार्थक बात अनीता जी ...!!
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक ज्ञान ...
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी, राजेन्द्र जी, अनुपमा जी व दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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