स्वर्ग क्या है ? जहां
जरा, मृत्यु, भूख-प्यास, शोक तथा मोह यह छह उर्मियाँ नहीं हैं. हमारा ‘मैं’ जब देह
के साथ जुड़ा होता है तो बुढ़ापे और मौत का भय उसे सताता है, मन के साथ शोक तथा मोह और
प्राण के साथ भूख-प्यास का अनुभव करता है. नींद में हमारा सम्पर्क देह, मन तथा
प्राण से टूट जाता है, ‘मैं’ उसी आत्मा में समा जाता है जहाँ से वह आया था. नींद
में ही विश्रांति पाकर हम पुनः जाग्रत अवस्था में देह आदि के साथ जुडकर सुख-दुःख
का अनुभव करते हैं. हमारी साधना का लक्ष्य है इन तीनों से परे शुद्ध अवस्था में
रहकर जीना सीखें, तब जीते जी स्वर्ग का अनुभव होगा. विज्ञानमय कोष में जाकर हमें
बुद्धि को प्रज्ञा में बदलना होगा, तब हमारी पहचान आत्मा के द्वारा होगी मन के
द्वारा नहीं. तब हमें केवल नींद में ही परम विश्रांति का अनुभव नहीं होगा बल्कि
जाग्रत अवस्था में भी हम देह भाव से मुक्त रहेंगे. भूख-प्यास आदि पर हमारा
नियन्त्रण होगा और सुख-दुःख से परे आनन्द के क्षणों के हम साक्षी रहेंगे.
इस स्वर्ग को ढूँढना ही होगा .........
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