जून २००५
हमारे
भीतर का ज्ञान, व्यवहार तथा वाणी से ही प्रकट होता है, हम यदि झुंझला जाते हैं,
खिन्न हो जाते हैं अथना टेढ़ा बोलते हैं तो हम हिंसा कर रहे होते हैं, जिसका पहला
शिकार हम स्वयं होते हैं. वाणी के साथ-साथ हमारे हाव-भाव तथा व्यवहार की सूक्ष्म
तरंगें भी सामने वाले व्यक्ति को छूती है. हमारे भीतर क्रोध, भय आदि के संस्कार
हैं, परिस्थिति आने पर यदि हम भय अथवा क्रोध के शिकार नहीं होते उससे बच निकलते
हैं तो वह संस्कार नष्ट होने लगता है अन्यथा उर्वरक भूमि पाते ही जमने लगता है और
वृक्ष रूप में बढ़ने लगता है, भविष्य में उसमें अनेकों फल लगने ही वाले हैं तथा
अनेकों बीज बनने वाले हैं, जिससे दुःख ही दुःख मिलने वाले हैं. इसी तरह भीतर प्रेम
व शांति के संस्कार भी छुपे हैं हैं. प्रेम की तरंगे शब्दों से पहले ही सम्मुख उपस्थित व्यक्ति के हृदय को छू
लेती हैं, वे निशब्द होकर भी बहुत कुछ व्यक्त कर देती हैं. प्रेम का एक बीज भविष्य में वट वृक्ष बनने वाला है.
ज्ञान, व्यवहार तथा वाणी ही व्यतित्व का परिचायक होता है ...!
ReplyDeleteनव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाए
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
"प्रेम का एक बीज भविष्य में वट वृक्ष बनने वाला है."
ReplyDelete***
आपकी डायरी के पन्नो में अनंत सागर है... इन लहरों को हम तक लाने का बहुत बहुत आभार!
सादर!
जैसा बीज वैसा ही वृक्ष ....सोच समझ कर आचरण करना चाहिए ....!!गहरी बात !!
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें अनीता जी ....!!