जुलाई २००५
काल से प्रेरित होकर हम अपने
जीवन को किसी न किसी दिशा में ले जाते हैं, ईश्वर चाहते हैं, हम शीघ्र अति शीघ्र
उसके पास पहुंचें, वह तरह-तरह से हमें प्रेरित करते हैं, जगाने का प्रयत्न करते
हैं. जब हम अपनी इच्छा से उसकी ओर चलना आरम्भ करते हैं तो सुख-दुःख के चक्र से
बाहर निकल जाते हैं, द्रष्टा मात्र रहकर हम जीवन को गति देते हैं. तब न कुछ होने
का भाव सताता है न कुछ पाने का, जीवन में अभय का गुण आता है. मन की समता बनी रहकर,
मन शांत रहता है. शांति से ही कर्त्तव्य कर्म करने की योग्यता पनपती है, उद्ग्विन
मन व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा को गंवाता है. ऊर्जा यदि भीतर रहे तो मन प्रसन्न रहता है.
वास्तव में ईश्वर की निकटता, सत्य की निकटता, सद्गुरु का सान्निध्य, आत्मा की
निकटता सभी हमारे लिए परम लक्ष्य हैं, जीवन का एक क्षण भी यदि इनके बिना बीतता है
तो इनकी लालसा में ही बीतता है. हमारे जाने या अनजाने उसी की तलाश चलती रहती है.
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteशरण में ले लो हे परमेश्वर । भाव-पूर्ण प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसदा जी व शकुंतला जी, आप दोनों का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteब्रब्हू के चरणों के बाद कोई ओर स्थान की जरूरत कहाँ ...
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