जून २००५
निजी सुख
की कामना का त्याग ही हमें ईश्वर के राज्य में ले जाता है. अपने स्वार्थ की सिद्धि
चाहना ही दुःख का कारण है. दुःख हमें ईश्वर से दूर ले जाता है. दुखी होकर हम अपने
को ही हानि ही पहुंचाते हैं, दुखी होना अज्ञानता का लक्षण है. ज्ञान का आश्रय लेते
ही हम सुखी होने का गुर सीख लेते हैं. सभी दुखों से छूट जाना ही मुक्ति है, मोक्ष
है, यही भगवद प्राप्ति है. इसे पाने के लिए हमारी योग्यता का कुछ भी महत्व नहीं
है, अर्थात हम अपनी योग्यता के बल पर भगवद प्राप्ति नहीं कर सकते. हमें अहंकार का
त्याग करके शरण में जाना होगा, अपने कुशल-क्षेम की जिम्मेदारी अस्तित्त्व पर छोड़
देनी होगी. कृष्ण ने स्वयं ही अपनी प्राप्ति का मार्ग बताया है-
सर्व धर्मान परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज
अहम् त्वां सर्व
पापेभ्य मोक्ष्यामि माशुचः
शरण में जाने का मार्ग
सद्गुरु बताते हैं, जहाँ से वृत्ति उठती है, उसमें विश्रांति पाने का नाम ही
शरणागति है. ध्यान, प्रार्थना अथवा जप में हम उस स्थान पर पहुंच जाते हैं जहाँ से
सारे विचार उठते हैं, जो मन, बुद्धि का उद्गम है, जो समस्त कारणों का कारण है,
वहीं जाकर आनन्द का अनुभव होता है.
आपको पढा , सुना और गुना ।
ReplyDeleteअमृता जी, अब इसे जीवन में उतरना भी होगा..
Deleteसुबह सुबह आपको पढ़कर एक आनंद की अनुभूति होती है ...!!आभार ।
ReplyDeleteहे परमेश्वर हे परममित्र प्रभु तुम ही तो हो प्रेरक मेरे । भाव-पूर्ण प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअमृता जी, अनुपमा जी व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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