जून २००५
शास्त्रों
में लिखा है सूर्य नाड़ी चलती हो तब भोजन करें तो शीघ्र पचता है और पेय पदार्थ तब
लें जब चन्द्र नाड़ी चलती हो. जगत का सार शरीर है, शरीर का सार इन्द्रियां हैं,
इन्द्रियों का सार मन है, मन का सार प्राण है, प्राण का सार आत्मा है. सन्त जन
सचेत करते हैं और व्यर्थ के कार्य-कलापों में अपनी ऊर्जा व्यर्थ करने से रोकते
हैं, जो उस आत्मा की प्राप्ति में सहायक हो उसे ही करना है, अन्यथा जो सहज
कर्त्तव्य रूप में सामने आता जाये. जब तक संसार से सुख पाने की वांछा बनी रहेगी,
तब तक पूर्ण सत्य का पता नहीं चलेगा. कृष्ण ने कहा है जिस भाव से कोई मुझे भजता है
मै उसी भाव से उससे मिलता हूँ. यदि समपर्ण पूर्ण नहीं है तो अनुभव भी पूर्ण नहीं
होगा.
कितनी सुंदर बात ....आभार अनीता जी ...!!
ReplyDeleteअनुपमा जी व देवेन्द्र जी स्वागत व आभार !
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