Sunday, December 29, 2013

कण कण ऊर्जा हो सार्थक

जून २००५ 
इच्छाओं को पूरा करने के प्रयास में हम अपनी सहज आवश्यकता को भी भुला बैठते हैं. इस जगत में अपने चारों ओर लोगों को वस्तुओं का गुलाम बनकर दुखी होते हुए देखते हैं तथा कुछ सजग व्यक्तियों को अकिंचन होकर भी प्रसन्न देखते हैं. वास्तविकता को भूले हुए लोग अपनी आवश्यकता से अधिक सामान इकट्ठा करते रहते हैं, फिर उसकी साज-सम्भार में अपनी ऊर्जा को व्यर्थ गंवाते हैं. हमारी ऊर्जा का उपयोग स्वयं को तथा स्वयं के इर्दगिर्द का वातावरण संवारने में होता रहे तभी उसकी सार्थकता है. 

5 comments:

  1. जीवन को सार्थक करने का सहज उपाय यही है।

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  2. सुख और दुख का आधार हमारा चिन्तन ही है । सुन्दर प्रस्तुति ।

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  3. वीरू भाई, रमाकांत जी, शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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