मई २००५
कन्हैया
की छवि मीरा के मन में समा गयी है, उसके प्रति अपार प्रेम का अनुभव उसे होता है.
जब उसका नाम हृदय में आता है (जो कि निरंतर आता ही रहता है) तो एक आनंदी भाव छा जाता है, उसके लिए बहुत अश्रु भी बहाये हैं
उसने, उसकी रग-रग में वही है, एक-एक कोशिका में, वही भीतर है और वही बाहर है, वही
प्रेम है, वही विरह है, वही अपना है, वही अपनों में भी है, वही सद्गुरु है, वही
आत्मा है, तभी वह इतना प्यारा है. वह क्या है इसे कौन बयाँ कर सकता है, उसे तो महसूस
किया जा सकता है, उसे पिया जा सकता है, भीतर ही भीतर अमृत की तरह वह रिसता जो है,
अंतर को भिगो देता है, वह रसपूर्ण है, वह मधुर है, वह इतना मृदु है कि... वह इतना
आनन्दमय है कि.. वह जब निकट होता है तो जैसे सब कुछ मिल गया हो, फिर दुनिया में कुछ
भी पाने जैसा नहीं रह जाता, यह जगत तब फीका लगता है, उसके प्रेम का अनुभव जिसे हुआ
है वही जानता है. वह मस्त कर देता है, उसके लिए मन दीवाना हो जाता है, वह जब कृपा
करता है तभी यह खजाना मिलता है, वह एक बार जिसका हाथ थाम लेता है, उसे कभी नहीं छोड़ता,
वह सच्चा मीत है, वह मीरा के योग-क्षेम का भार उठाता है.
आस्था जगाता ...आनंदमय करता आलेख .....ईश्वर के प्रति शुभविचार अनीता जी ...!!
ReplyDeletegreat...
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/१२/१३को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है यहाँ भी आयें --वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )
ReplyDeleteRajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR -
राजेश जी, बहुत बहुत आभार !
Deleteभक्ति अपने पुत्र वैराग्य और ज्ञान संग फलती फूलती है मीरा भाव में। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteखूब !
ReplyDeleteअनुपमा जी, वीरू भाई, राहुल जी, व वाणी जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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