मई २००५
‘नाम न
बिसरे, नाम न बिसरे, ऐसी दया करो महाराज ! नाम में बहुत शक्ति है नाम के रूप में
एक दिव्य चेतना हमारे अस्तित्त्व को ढक लेती है, हम उसके प्रभाव से ऊपर उठ जाते
हैं, तब तुच्छ विकार हम पर प्रभाव नहीं डाल सकते. नाम और नामी में अटूट सम्बन्ध
है. नाम में अदृश्य रूप से नामी के सभी गुण विद्यमान रहते हैं, नामी हमसे छिपा है
पर उसका नाम सहज प्राप्य है. उसका सुमिरन हो तो नामी को एक न एक दिन प्रकट होना ही
पड़ता है. नामी की कृपा का अनुभव जब होता हैतो हम जैसे बादशाह बन जाते हैं, एक अखंड
शांति का सागर हमारे चारों ओर लहराने लगता है. प्रेम की लहर भीतर उठती है जिसमें
मन, प्राण सब भीग जाते हैं. मन जैसे रूपांतरित हो जाता है.
प्रभु स्मरण करते रहें .....कुछ तो आंश हैममे आएगा ...तब एक हल्का प्रकाश भी हृदय आलोकित कट जाएगा ...बहुत सुंदर बात अनीता जी ।
ReplyDeleteनाम ही सत्य है...
ReplyDeletebahut sundar post...
ReplyDeleteअनुपमा जी, कैलाश जी व राहुल जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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