मई २००५
जिसका
कार्य और रूचि एक हो, जिसका हृदय और मस्तिष्क एक हो उसमें सख्य भाव होता है. राम
और लक्ष्मण में भी ऐसा सख्य भाव है. लक्ष्मण सदा से ही राम के संग हैं. जगे हुए
ब्रह्म में जब सृष्टि की इच्छा होती है तो यह शेष उन्हें अपने शीश पर धारण करता
है. दोनों में अद्वैत है. इसी तरह का सख्य भाव भक्त और भगवान में होता है, गुरु और
शिष्य में होता है. मानसिक रूप से वे साथ रहते हैं, भौतिक दूरी उनके लिए कोई दूरी
नहीं होती. जो ईश्वरीय तत्व को जानता है, वह हर क्षण जुड़ा रहता है, दोनों के बीच
प्रेम की धारा अविरल बहती रहती है. समाधि का अनुभव दोनों को होता है. आधि, व्याधि,
उपाधि से मुक्त होकर भक्त, भगवान के प्रेम का पात्र बन जाता है. अपनी ऊँचाई पर
स्थित होते हुए भी वह उसके मन से जुड़ जाते हैं, वे सर्व समर्थ हैं.
वाह...
ReplyDeleteकितनी सुन्दर व्याख्या है... कितना सुन्दर सत्य!
वे सर्व समर्थ हैं.सर्वशक्तिमान ....!!बहुत सुंदर बात अनीता जी !!
ReplyDeleteअद्भूत भाव
ReplyDeleteहरि अनन्त हरि कथा अनन्ता >>
ReplyDeleteअनुपमा पाठक जी, अनुपमा त्रिपाठी जी, रमाकांत जी व शकुंतला जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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