Wednesday, December 11, 2013

सच की नाव खेवइया सतगुरु

मई २००५ 
जब भी हमने चित्त को मैला किया, हमें दंड मिला है, हम स्वयं को दुखी बनाते हैं और दुखी व्यक्ति दूसरों को भी दुख देता है. जैसा-जैसे चित्त निर्मल होता है, हम सुखी होते हैं और स्वयं सुखी व्यक्ति औरों को भी सुख देता है. जब-जब हम सजगता त्याग देते हैं, पहले अपनी हानि होती है फिर दूसरों की हानि होती है. जब यह बात समझ में आती है तभी वास्तविक रूप से हम धर्म का जीवन जीते हैं. धर्म की रक्षा करें तो धर्म हमारी रक्षा करता है. सत्य के निकट होते ही शांति, प्रेम तथा आनन्द का अनुभव होता है तथा सत्य से दूर जाते ही पीड़ा का, पीड़ा का अनुभव भला कौन चाहता है ?


6 comments:

  1. सुबह सुबह आह्लादित कराते भाव ....आभार अनीता जी ।

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  2. अनुपमा जी, अनुपमा पाठक जी व धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  3. सत्य के निकट होते ही शांति, प्रेम तथा आनन्द का अनुभव होता है ...

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