जून २००५
परमात्मा
प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होने वाली इच्छा है, पर संसार प्राप्ति की इच्छा कभी
पूर्ण नहीं हो सकती. आवश्यकता तथा इच्छा में भी अंतर है, इच्छाओं का कोई अंत नहीं
पर आवश्कताएं सीमित हैं. आवश्यकता की पूर्ति होती है, उसकी निवृत्ति विचार द्वारा
नहीं हो सकती पर इच्छा की निवृत्ति हो सकती है. ईश्वर प्राप्ति की इच्छा वास्तव
में हमारी आवश्यकता है, हर जीव आनंद चाहता है, क्योंकि वह ईश्वर का अंश है, उसमें
अपने अंशी से मिलने की जो स्वाभाविक चाह है, वह उसकी नितांत आवश्यकता है. जैसे
भूख, प्यास आदि आवश्यकताओं की पूर्ति भोजन, जल आदि से हम करते हैं, वैसे ही ईश्वर
प्राप्ति के बाद ही हमारी आनन्द की आवश्यकता की पूर्ति होती है.
सुन्दर रचना । सकल पदारथ है जग माहीं । कर्म हींन नर पावत नाहीं । तुलसी
ReplyDeleteशकुंतला जी स्वागत व आभार !
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