अप्रैल २००५
गुरु
हमारी संवेदनाओं और भावनाओं को परिष्कृत करते है. वे हमें प्रकाश, सत्य और अमरता
की ओर ले जाना चाहते हैं. मन को देह से ऊपर उठाना सिखाते हैं. मन के पार जाते ही
भीतर अपने आप परिवर्तन होने लगता है. हमारे भीतर सत्य को जानने के लिए जो कुछ भी
होता है अपने आप ही होता है, वह कृपा के कारण ही है, हम केवल साक्षी मात्र बनते
हैं. हमारा कार्य केवल शरण में जाना है, हमारे इर्द-गिर्द न जाने कितने बंधन घेरा
डाले खड़े हैं, इन बन्धनों को तोड़ना हम नहीं जानते. अपने मन के हाथों हम बार-बार
दुःख पाते हैं. अपनों से लड़ाई करना कितना कठिन है. सद्गुरु हमारे मन को मजबूत करते
हैं, उसे सही मार्ग देते हैं, ध्यान, प्राणायाम की विधियाँ बताते हैं. मन तब सजग
होता है, नित्य-अनित्य को पहचानने लगता है, भीतर प्रज्ञा जगती है, हम आत्मा को
जानने के अधिकारी बनते हैं.
गुरु बिन कैसे गुण गावें .....सत्या एवं सार्थक ।
ReplyDelete" असतो मा सद् गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अम्रतं गमय ।"
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ReplyDeleteस्वाध्याय में भी गुरु सहायक रहतें हैं। गुरु भगवान् की और जाने वाला रास्ता बताते हैं। कृष्ण भावना भावित होना सिखाते हैं।
हमारे भीतर सत्य को जानने के लिए जो कुछ भी होता है अपने आप ही होता है, वह कृपा के कारण ही है, हम केवल साक्षी मात्र बनते हैं.....
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार १०/१२/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ स्वागत है ---यहाँ भी आइये --बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते
ReplyDeleteRajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
राजेश जी, बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteअनुपमा जी, राहुल जी, शकुंतला जी, व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !
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