अप्रैल २००५
अनंत
धैर्य तथा अखंड भरोसा हमें शुभ की ओर ले जाता है. हमारा मन जो आज हमारा शत्रु
प्रतीत होता है, साधना की अग्नि में तपकर मित्र हो जाता है. फिर वह स्वतः ही परम
की ओर जाता है, आत्मा के सान्निध्य का रस प्राप्त करने के बाद पुनः झूठे रस को पाकर संतुष्ट नहीं होता, बल्कि
उसी दिव्य रस को चखना चाहता है. वर्तमान के क्षण में वही दिव्यता हमें मिलती है, हर
आने वाला क्षण अपने भीतर अनंत प्रेम छिपाए है. शुद्ध वर्तमान हमें मुक्त कर देता
है. उसमें रहने वाला मन एक उन्मुक्त पंछी की तरह खुले गगन में उड़ान भर सकता है,
अन्यथा भूत तथा भावी की जंजीरें बंधीं हो तो पंछी कैसे उड़ेगा. अतीत का पश्चाताप
तथा भविष्य की आशंका की जंजीरें बांध दें तो वह नहीं उड़ पायेगा, ज्ञान की तलवार से
इन्हें काट सकते हैं. भूत कभी लौट कर नहीं आता और भविष्य अनिश्चित है, जिन पर न हमारा
वश है और जो न हमें तृप्त कर सकते हैं. जिसके मन में पूर्ण की चाह उठे वह सदा
वर्तमान में ही रहता है वही ज्ञानी है और वही पूर्ण तृप्ति का अनुभव करता है.
शुभम करोतु कल्याणम……मन का दीप प्रज्ज्वलित कर रहा है आपका आलेख …सुन्दर ज्ञानदर्शन।
ReplyDeleteजीवन में आनन्द सदा हो यही अनुग्रह करना भगवन ! सुन्दर रचना \
ReplyDeleteअनंत धैर्य तथा अखंड भरोसा हमें शुभ की ओर ले जाता है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर उत्कृष्ट प्रस्तुति ....!
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...
अनंत धैर्य तथा अखंड भरोसा हमें शुभ की ओर ले जाता है.
ReplyDeletesaty wachan
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ३ /१२ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteआभार, राजेश जी
Deletesundar chintan ....abhivyakti ...
ReplyDeleteसाधना श्रेष्ठ है ... भरोसा शुभ की और ले जात्रा है .. सच कहा है ...
ReplyDeleteजीवंत कलम को दिल से प्रणाम...
ReplyDeleteअनुपमा जी, शकुंतला जी, धीरेन्द्र जी, रमाकांत जी, दिगम्बर जी, ज्योति जी , राहुल जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार !
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