जून २००५
हमारा भीतर
जब तक बिगड़ा है, बाहर भी बिगड़ा रहेगा. झुंझलाहट, अहंकार, कठोर वाणी, अवमानना तथा
प्रमाद ये सारे अवगुण बाहर दिखाई देते हैं पर इनका स्रोत भीतर है, भीतर का रस सूख
गया है, सत्संग का पानी डालने से भक्ति की बेल हरी-भरी होगी फिर रसीले फल लगेंगे
ही. संसार का चिन्तन अधिक होगा तो उसी के अनुपात में तीन ताप भी अधिक जलाएंगे.
प्रभु का चिन्तन होगा तो माधुर्य, संतोष, ऐश्वर्य तथा आत्मिक सौन्दर्य रूपी फूल
खिलेंगे. कितना सीधा-सीधा हिसाब है. अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष तथा अभिनिवेश आदि
क्लेश हमें सताते हैं. आत्मज्ञान न होना, अहंकार, मृत्यु से भय तथा मोह इन्हीं के
कारण हैं. बुद्धि जब तक सात्विक नहीं होगी, दृढ निश्चय वाली नहीं होगी तब तक इनके
शिकार हम होते ही रहेंगे. ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारी बुद्धि को
प्रकाशित करे.
अमृत वचन!
ReplyDeleteक्या बात वाह! अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधियो यो नः प्रचोचयात् = हे ईश्वर हमारी बुध्दि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करो ।
ReplyDeleteअनुपमा जी, गाफिल जी, वीरू भाई व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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