Friday, April 4, 2014

अद्वैत ही साधना है

दिसम्बर २००५ 
योग वशिष्ठ में लिखा है, इस जगत का कारण मन ही है, मन ही दृश्य है और मन ही द्रष्टा भी, एक न रहे तो दूसरा भी नहीं रहेगा, तब स्वयं ही स्वयं में स्थित रहेगा. हमारी सारी परेशानियों, चिंताओं का कारण मन ही है. मन के पार कोई दुःख नहीं और यह मन वास्तव में कुछ नहीं एक परछाई है, इसे जानकर उससे पार हुआ जा सकता है वरना यह हम पर हावी हो जाता है और हम इसके कहे अनुसार चलते रहते हैं. जब भी हम दूसरे का दोष देखते हैं, हममें भेद बुद्धि आ जाती है. हम भेद करते हैं, जबकि यहाँ दो हैं ही नहीं, सब उसी एक का पसारा है. जो हम हैं वही अन्य भी हैं, तो कोई भी गलत नहीं है, सभी निर्दोष हैं, अपनी-अपनी जगह पर सही. हमें अद्वैत साधना है तभी हमारी साधना आगे बढ़ेगी.


1 comment:

  1. मन के पार कोई दुःख नहीं और यह मन वास्तव में कुछ नहीं एक परछाई है.....

    ReplyDelete