दिसम्बर २००५
परमात्मा
की कृपा की एक झलक भी यदि मिल जाये तो भीतर एक उत्सव छाने लगता है. तब लगता है इस
जगत में जिस क्षण भी जो भी हो रहा है, वही होना था. वही ठीक है, ऐसा ही लगता है,
कोई शिकायत नहीं, जब कोई कामना ही नहीं तो शिकायत का प्रश्न ही पैदा नहीं होता.
भीतर एक रस की धारा प्रकट होती है जिसने सब कुछ ढक लिया है, वही अब प्रमुख है.
ईश्वर की अनुभूति की रस धार, वह निकट है, वही सुगंध बनकर समाया है, वही संगीत बनकर
समाया है, वही प्रकाश बनकर और वही तरंग रूप में भीतर समाया है, वही अमृत बनकर भीतर
रिस रहा है अनवरत...
कोई शिकायत नहीं, जब कोई कामना ही नहीं तो शिकायत का प्रश्न ही पैदा नहीं होता. भीतर एक रस की धारा प्रकट होती है जिसने सब कुछ ढक लिया है, वही अब प्रमुख है.....
ReplyDeleteइश्वर का ध्यान ही परम आनद कि अनुभूति है ...
ReplyDeleteराहुल जी और दिगम्बर जी, स्वागत व आभार !
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