Thursday, April 24, 2014

मन माया के पार है वह

जनवरी २००६ 
‘जो फैलता है वही जानने योग्य है’. मन जब फैलता है तो वह माया के पार चला जाता है, वह आत्मा ही हो जाता है, पर वही मन जब सिकुड़ जाता है तो माया हो जाता है. हमारा मन ही संकल्प-विकल्प गढ़ता है और स्वयं ही उसके द्वारा सुखी-दुखी होता है, मन से पार जाने पर ही वह मिलता है जो फैलता है. मन की माया ही संसार से संबंध जोड़ती है, संसार में जाते ही मन एक से अनेक हो जाता है. जैसे एक पेड़ हमें भिन्न अवसरों पर भिन्न तरह से दिखाई देता है. मन जब भीतर जाता है तभी वह एक हो पाता है, तभी वह शरण में जाता है. मन से धीरे-धीरे पीछे पीछे हटना ही भीतर जाना है और तभी हम माया के पार जाते हैं. 

3 comments:

  1. आत्म ज्ञान ही मुक्ति का मार्ग है...

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  2. मन से धीरे-धीरे पीछे पीछे हटना ही भीतर जाना है और तभी हम माया के पार जाते हैं.....

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  3. कैलाश जी व राहुल जी, स्वागत व आभार !

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