जनवरी २००६
भगवान
की निकटता का अनुभव करना ही भक्त का धर्म है और मन जब उससे दूर जाये तो वही अधर्म
है. भगवान के वियोग में बहे आंसू ही भक्त की सम्पत्ति है, अर्थ है. भगवान की कामना
ही काम है. उसका सुमिरन ही मोक्ष है. उसकी निकटता का अनुभव गुरू कृपा से होता है,
तब धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अर्थ ही बदल जाते हैं. जीवन का उत्थान ही हमारा
ध्येय हो जाता है. सन्त कहते हैं, “रहो भीतर, जीओ बाहर”, उनके अनुसार विपरीत तत्व
जन्म से मृत्यु तक हमारे साथ रहते हैं. जीवन के हर पहलू पर वे हमें चिन्तन करना
सिखाते है. टुकड़ों में बंटी जिन्दगी से दूर एक पूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करते हैं. सद्गुरु
व परमात्मा के आश्रय में हम कितने सुरक्षित हैं. उनकी कृपा का जल मन की सूखी धरती
को हरा-भरा कर देता है.
मन को तृप्ति देते भाव ...बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteआज तक भगवान को किसी ने देखा नहीं है , हाँ मेरा तात्पर्य साधारण मनुष्य से है, पर हम सब उनकी महिमा का ज्ञान रखते हैं. एक शक्ति अवश्य है, रूप कोई भी हो, जैसा भी हो, उस पर अटूट विश्वास करके एक अद्भुत शांति मिलती है अंतरात्मा को.
ReplyDeleteसही कहा है आपने..
Deleteटुकड़ों में बंटी जिन्दगी से दूर एक पूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करते हैं. सद्गुरु व परमात्मा के आश्रय में हम कितने सुरक्षित हैं. उनकी कृपा का जल मन की सूखी धरती को हरा-भरा कर देता है......
ReplyDeleteभावना-मय रचना । सुन्दर सीख ।
ReplyDeleteअनुपमा जी, राहुल जी व शकुंतला जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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