जनवरी २००६
पुराणों
में कथा है अत्रि व अनसूया के यहाँ तीनों देव प्रकट हुए. अत्रि वह है जो तीनों
गुणों से अतीत है, अथवा जो तीनो तापों से परे है. अनसूया वह है जो असूया अर्थात
ईर्ष्या से रहित हो, उनके यहाँ ईश्वर का प्राकट्य होता है. जैसे समाधि के लिए
साधना होती है वैसे ही भीतर भगवान के प्रकटीकरण के लिए भक्ति की आवश्यकता है.
भक्ति से गुणातीत अवस्था का अनुभव होता है, तीनों ताप नहीं सताते तथा दोष दृष्टि
का नाश होता है तब भीतर शांति का प्रकाश छा जाता है. वृत्तियाँ तब बाहर से भीतर की
ओर मुड़ने लगती हैं. यह जगत प्रतिबिम्ब मात्र है, इस वास्तविकता का भान होते ही
जीवन एक खेल लगने लगता है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteअत्री और अनसूया के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने.
आभार
अच्छा लगा इन चरित्रों को जानना ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुती ......
ReplyDeleteसुन्दर सन्दर्भ । श्रुतियों में सीखने के लिए बहुत कुछ है । आप प्रयास-पूर्वक लिखती हैं और हमें परोस देती हैं । आभार ।
ReplyDeleteराकेश जी, दिगम्बर जी, मुकेश जी व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteऔर हम दृष्टा बन जाते हैं ...बहुत सार्थक कथन ....!!आभार अनीता जी ...!!
ReplyDeleteयह जगत प्रतिबिम्ब मात्र है, इस वास्तविकता का भान होते ही जीवन एक खेल लगने लगता है.....
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