जनवरी २००६
आत्मा
रूपी कश्यप का संयोग जब अदिति से होता है तो सद्गुणों का जन्म होता है. अदिति अभेद
मति है, उससे आदित्यों की सृष्टि होती है. आदित्य प्रकाश रूप हैं, देव रूप हैं. जब
अभेद बुद्धि से आत्मा मिलती है तो प्रेम, विश्वास, करुणा, सत्य तथा विनय का जन्म
होता है. दिति भेद मति है, इससे दुर्गुण ही उत्पन्न होते हैं. स्वार्थ, लोभ,
अहंकार, द्वेष, ईर्ष्या तथा मोह सब दिति की संतानें हैं. हमारी बुद्धि की निर्मलता
ही सुख-दुःख का कारण है. सद्गुण जब भीतर विकसित हों तब उसे कृपा मानना चाहिए और ईश्वर
ने बुद्धियोग प्रदान किया है ऐसा मानने से अहंकार मिटने लगता है. जब तक अभेद नहीं
होगा द्वंद्व बने ही रहेंगे तब तक जीवन से दुःख मिट नहीं सकते. अभेद ही अद्वैत है,
जहां एक ही सत्ता है. वही सत्ता विभिन्न रूप लेकर प्रकट हो रही है. सभी अपनी जगह
श्रेष्ठ हैं, हर कोई अपने आप में पूर्ण हैं, पर पूर्णता अभी दबी हुई है. किसी के भीतर
पूर्णता प्रकट हो जाये तो वह कभी अपूर्णता को देखेगी ही नहीं. इसीलिए सन्त इस जगत
को निर्दोष ही देखते हैं.
बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक ...शांति सी दे रहे हैं आपके शब्द .....इसे मैं अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर कर रही हूँ .... :-) आपकी इजाज़त लिए बिना ही ....पर ये विचार बहुत लोगों तक पहुंचे यही मन किया ...!!
ReplyDeleteअनुपमा जी, आप ख़ुशी से इस ब्लॉग की किसी भी पोस्ट को शेयर कर सकती हैं..स्वागत व आभार !
Deleteहमारी बुद्धि की निर्मलता ही सुख-दुःख का कारण है. सद्गुण जब भीतर विकसित हों तब उसे कृपा मानना चाहिए और ईश्वर ने बुद्धियोग प्रदान किया है ऐसा मानने से अहंकार मिटने लगता है.....
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी
Deleteसार्थक विचार ...आभार
ReplyDeleteभाव -पूर्ण प्रस्तुति । ईश्वर करे आपकी कठौती में गँगा जी हमेशा विद्यमान रहें ।
ReplyDeleteयहां आकर मन सचमुच निर्मल हुआ।
ReplyDeleteमोनिका जी, शकुंतला जी व जोशी जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete